Wednesday, August 31, 2011

क्या आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए एक दूसरे का गला काटने को तैयार है?

देश के अन्दर बढ़ रहा नक्सलवाद या फिर किसानो का दर्द या फिर जगह-जगह उठ रहे आरक्षण की मांग आखिर क्या हो गया है इस लोकतन्त्र को, ये समझने का प्रयास जारी है। कहीं न कहीं इन सब के पीछे अर्थ एक बड़ा मुद्दा है, आज देश का राजनेता राजनीति अर्थ कमाने के उद्देश्य से कर रहा है। आरक्षण की मांग इसलिए उठ रही है कि लोग अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए आरक्षण का सहारा लेना चाहते है, या फिर नक्सलवाद उनका भी मुद्दा अर्थ से जुड़ा हुआ है, अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए या फिर कह सकते है कि आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए ही सारा संघर्ष चल रहा है। नेता, अभिनेता, बिजनेस मैन, यहां तक साधु महात्मा भी सब के सब डाक्टर, इंजीनियर, वकील, मास्टर या कह सकते है हर वर्ग अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए एक दूसरे का गला काटने को तैयार है, तो दूसरी ओर किसान मजदूर या फिर गरीबो, दलितों व दबे-कुचले लोगों के द्वारा आन्दोलन हो रहा है, चाहे वो आरक्षण के रूप में हो या फिर नक्सलवाद के रूप में। एक वर्ग दूसरे वर्ग को लूटने के लिए प्र्र्रयासरत है तो दूसरा वर्ग अपने आप को बचाने के लिए। कहीं न कहीं इन सब के पीछे एक राजनैतिक वर्ग भी है जो इन लोगों का बखूबी इस्तेमाल कर रहा है, चिन्ता का विषय यही है ये राजनैतिक वर्ग भी अपने आप को आर्थिक लाभ-पहुंचाने के लिए संघर्षरत है। यहां पर हर पक्ष आर्थिक पक्ष से जुड़ा हुआ है। सोचने का प्रश्न यह है कि जिन नक्सलियों के पास खाने के लिए दो वक्त की रोटी नही है वे एके-47 लेकर कहां से घूम रहे है और उनकी असली मांग क्या है? नक्सलवादी आखिर चाहते क्या है,? अगर देखा जाये तो कुछ लोगों का मानना है कि चीन उनको सपोट कर रहा है । अगर यह सब सच है तो सवाल यह उठता है कि भारत की आंतरिक सुरक्षा को भेदकर यह गोला बारूद व हथियार नक्सलियों तक कैसे पहुंचे ? क्या कर रही थी सरकार तब जिस समय इनके हाथों में हथियार पहुंचे और इन लोगों ने इनका इस्तेमाल करना शुरू किया। वो कौन से कारण थे जिन्होने नक्सलवादियों को हथियार उठाने के लिए मजबूर कर दिया। इनकी पीढ़ा को हम गहराई में जाकर ही समझ सकते है। अगर ये लड़ाई लूट के खिलाफ है तो जारी रहना चाहिए मगर ये लड़ाई हथियारों के दम से नही बल्कि विचारांे से लड़नी होगी। क्योंकि इस लड़ाई में जो बेकुसूर लोग मारे जा रहे हैं उनका क्या दोष ? क्यों अपने फायदे के लिए हम उनके प्राणों का अंत करें? चारांे तरफ भ्रष्टाचार चरम पर है चाहे वे न्याय पालिका या फिर कार्य पालिका, या फिर संसद के अन्दर बैठे सांसद, किसके ऊपर भरोसा करंे कि ये हमंे इन्साफ देंगे। सरकार को इन संघर्षों और आन्दोलनों के पीछे के कारणों की जांच करनी होगी। तथा इन लोगों के साथ इन्साफ करना होगा। स्थानीय पुलिस प्रशासन ध्वस्त हो चुका है। इसलिए आज आर्मी की पहल की गई है जो कि उचित नहीं है। सरकार की नीतियां बनती तो है जनता के हित में मगर ये नीतियां चलाने वालों के नियत में खोट होता है। जिसका पूरा-पूरा लाभ इन नेताओं ओर नौकरशाहों के खातों में चला जाता है। जनता में बढ़ता आसंतोष कहीं न कहीं इस रूप में उभर कर सामने आया है, प्राकृतिक सम्पदा की लूट में नेताओं और नौकरशाहों का चरित्र चिन्ताजनक है, सरकार को ये सोचना पड़ेगा कि नक्सलियों को गोली से उड़ा देने से उनकी समस्या का समाधान हो जायेगा, ऐसा नहीं है, सरकार आज भूखें को रोटी देने में असमर्थ है, और इस भूल में इन्सान केा जानवर बना दिया है, तो सरकार को इसका विकल्प सिर्फ गोली के रूप मे दिख रहा है, क्योंकि वन जानवरों को संभालना अब सरकार के बस की बात नहीं है। अगर सरकार ने इनसे रोटी न छीनी होती तो शायद ये नक्सलवाद उत्पन्न ही नही होता, क्योंकि इन लोगों के अन्दर सरकार रूपी तंत्र से नफरत हो चुकी है, इसलिए आज ये कुछ भी करने को तैयार है, इनको लगता है कि हमंे इन्साफ बिना गोली के नहीं मिल सकता, आप लोगों से में एक सवाल करता हूं। अगर आपकी रोटी छीन कर ताकत के बल पर कोई खायेगा तो आप उसका विरोध करेंगे की नहीं ? एक न एक दिन जब आप भूख से मर रहे होंगे तो आप भी यही कदम उठायेंगे अगर आपके अन्दर मानव जैसे गुण होंगे तब।

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