Saturday, August 27, 2011

ना जियों न जीने दो, इसी में समझदारी है

इन्सान को जीने के लिए मात्र पंचतत्वों की आवष्यकता है। अग्नि, वायु, पृथ्वी, जल, आकाष जो ईष्वर ने मुफ्त में दी थी। परन्तु आज क्या मुफ्त में है। यह जान लेना अति आवष्यक है और कितना सुरक्षित है मनुश्य के पास।
अग्नि - अग्नि के नाम पर लकड़ी है न ही कोई अन्य वस्तु। क्योंकि सरकार ने इसपर कब्जा कर लिया है। गैस, तेल सब पैसे से मिलता है।
वायु- वायु को चन्द लोग मिलकर दिनरात प्रदुशित कर रहे है और नोट छाप रहे है।
पृथ्वी- पृथ्वी की हालात आप देख ही रहे है भगवान ने किसी के नाम एक इंच बैनामा नहीं किया है। इन्सान को ही नही बल्कि पषु-पक्षियों को भी मुफ्त में दिया था लेकिन इन्सान ने एक-एक इंच कब्जा कर लिया और आज आपस में एक-एक इंच के लिए आपस में लड़-मर रहे है। पृथ्वी पर दो लागों का कब्जा है एक तो वो जिनके वाजुओं में ताकत है दुसरे वो जिनकी जेब में पैसा है वह चाहे किसी धर्म जाति या भाशा के लोग हो और जो कमजोर वर्ग है उसके पास जीने के लिए दो बीघा भी नहीं है, जिसने जितना अधिक प्राकृतिक सम्पदा पर कबजा कर लिया वह उतना धनी हो गया जो नही कर पाया वह गरीब हो गया जिसे आप आज देष के उद्योगपति कहते है उन लोगों ने जबरजस्त प्राकृतिक सम्प्रदायों पर कब्जा कर रखा है सोने की खान कोयले की खान हीरे की खान या फिर कह सकते है सारे खनिजांे पर इन्ही का कब्जा है। आप समझ सकते है कि जिस तरह आप के घर में सोना निकल जाय तो आप राजा हो जायेगें और इनके पास तो भण्डार है तो राजा ये होगे या फिर आप। लेकिन ईष्वर ने इन सम्प्रदाओं को मुफ्त में दिया है बिना किसी कास्ट के मगर कीमत आदमी तय कर रहा है। 40000 रु. गज ये लेकर 40 रु. गज तक मगर आम आदमी तब भी बिना छत के था और आज भी दो वर्ग सदा बने रहे कमजोर वर्ग और ताकतवर वर्ग। ताकतवर वर्ग दूसरे वर्ग का षोशण आदि काल से करता चला आ रहा है।
पानी- पानी की हालात जस की तस बनी हुई है। बड़े-बड़े औद्योगिक केन्द्र जल को प्रदुशित कर रहे है। जिसके कारण नदियां नालों का रूप धारण कर ले रही है। लेकिन खुषी की बात  भी यही  है यही औद्योगिक घराने मिनरल वाटर का प्लाट लगाकर पानी को साफ कर रहे है मात्र10 से 30रू प्रति ली के हिसाब से बेच रहे है। आम आदमी के लिए स्वच्छ जल की भारी मारा मारी है जब इन्सानो की ये हालत है तो पषु पक्षी जानवरो की क्या हालत होगी इसका आप अन्दाजा आसानी से लगा सकते है।
आकाष- अकाष की हालत तो आप देख ही रहे है ओजोन की परत में छेद हो गया पूरे विष्व में आज ग्लोवल वार्मिग पर चर्चा हो रही वो दिन दूर नहीं जब सूर्य की किरणे  सीधे आप के उपर अटैक करेगी और हम बीना मारे मर जायेगे इस प्रकार हम आकाष को भी सुरक्षित नहीं रख सके
अब सवाल ये उठता है क्या हम सही दिषा में विकास कर रहें है अगर नहीं तो क्यो नहीं अगर आप ये साचते है कि आपको आतंकी मार डालेगे या फिर लूटेरे लूट लेगे तो आप इसकी चिन्ता करना छोड़ दिजिए देष के अन्दर जो तरह तरह की बिमारिया फैल रही उसके पीछे इन्ही पंच तत्वो का खेल हॅै औ आपके षरीर के अन्दर जो खेल हो रहा र्है वो भी इन्ही के द्धारा होता है अगर आपको को खुद को बचाना है तो इनको बचाना ही होेगा
 क्योंकि ईष्वर ने न कोई जाति न कोई भाशा और न ही कोई धर्म बनाया न ही कोई देष बनाया और न ही प्रदेष बनाया केवल हम लोगो को इन्सान बनाया
ईष्वर  केवल  यही चाहता है उसकी बनाई हर वस्तु से आप प्रेम करे चाहे वो पषु पक्षी जीव  जन्तु  कुछ भी क्यों  न हो ईष्वर की बनाई किसी भी वस्तु को  मनुश्य को नश्ट करने का कोई अधिकार नही है जो मनुश्य नश्ट करने का प्रयास करता है वो ना समझ होता है और वही कश्ट का भोगी होता है अफसोस इस बात का है कि इन्सान इन्सान को मिटाने के दिन रात परिश्रम कर रहा है एक से एक आधुनिक हथियार बना रहा है अणु बम से परुमाण बम बना रहा है सवाल यहा पर ये है कि किसके लिए उस ईष्वर की बनाई वस्तु को नश्ट के लिए अगर ऐसा तो विकास की  ये परिभाशा किसी को पसन्द  नहीं होगी आखिर हम किसी की जान लेना क्यों चाहते है क्या किसी की जान लेकर हम  कभी सुखी हुये है या फिर कभी होगे पषु पक्षी को काट के  हम खा लेते है क्योंकि  हमें लगता है  कि  बहुत अच्छा स्वाद है यानि की जीभ के स्वाद के लिए हम किसी मासूम कि हत्या कर देते है मगर कोई आप की हत्या करना चाहता है तो आपको कश्ट होता है आप अपनी सुरक्षा के लिए अणु वम से लेकर परमाणु तक रख लेते है। दुख इस बात का है कि आप सीधे साधे जानवरों पर अपनी ताकत का इस्तेमाल करते है क्योंकि वो आपको नहीं खा सकता इसीलिए आप उसे खा लेते है। कुछ आप ही लोगों की तरह वो आतंकवादी होते है जिन्हे आप लोगों को मारने में मजा आता है या फिर कह सकते है कि सुख मिलता है। यानि हर आदमी अपने-अपने सुख के लिए एक दूसरे की हत्या कर रहा है। जबकि सुख किसी की हत्या करके नहीं पाया जा सकता। बल्कि किसी को दो रोटी खिलाकर सुख पाया जा सकता है। वो दो रोटी पषु-पक्षी या फिर मनुश्य किसी को भी खिलाकर पा सकता है। काष आप इस बात को समझ पाते और इस नफरत को प्यार में बदल पाते। षरीरिक सुख के लिए हम एक-दूसरे की हत्या कर रहे हैं के अगर पूरा हिन्दुस्तान मुझे मिल जाए तो मैं राजा हो जाऊंगा और मुझे पूरा पाकिस्तान मिल जाए तो मैं राजा हो जाऊंगा या फिर पूरे विष्व पर कब्जा कर लिया  तो मैं राजा हो जाऊंगा केवल अपने षरीर को सुख देने के लिए क्योंकि राजा बनने के बाद आपके पास ढेर सारी गाडियां होगी, बहुत अच्छे मकान होगें, बहुत खूबसूरत पत्नी होगी इनकी संख्या आवष्यकता से अधिक होगी तो क्या सच्चे अर्थों में सुखी होगे। अगर आपको लगता है कि सिकन्दर सुखी था तो आप गलत सोचते है क्यों दूसरे को दुख देकर केवल दुख की प्राप्ति होती है न की सुख की। सम्राट अषोक के पास भी तब तक सुख नही था जब तक वो लड़ रहे थे अपने षरीर के सुख के लिए खून बहा रहा थे मगर जब उन्होंने बचाने के लिए जड़े हुए थे तो वो सुखी हो गये इसी इस तरह अगर आप सच्चे अर्थों में सुख प्राप्त करना चाहते है तो लोगों के सुख के बारे में सोचो। लोगों को अधिक से अधिक सुख देने का प्रयास करेगे उतना अधिक आपको सुख मिलेगा। सीधा सा नियम है सुख दो और सुख लो।

No comments: